Add To collaction

सोजे-ए-वतन--मुंशी प्रेमचंद


शेख मखमूर

3
नमकखोर सरदार की फौज रोज ब रोज बढ़ने लगी। पहले तो वह अंधेरे के पर्दे में शाही खजानों पर हाथ बढ़ाता रहा, धीरे-धीरे एक बाकायदा फौज तैयार हो गयी, यहाँ तक कि सरदार को शाही फौजों के मुकाबले में अपनी तलवार आजमाने का हौसला हुआ, और पहली लड़ाई में चौबीस किले इस नयी फौज के हाथ आ गये। शाही फौज ने लड़ने में जरा भी कसर न की। मगर वह ताकत, वह जोश, वह जज्बा, जो सरदार नमकखोर और उसके दोस्तों के दिलों को हिम्मत के मैदान में आगे बढ़ाता रहता था, किशवरकुशा दोयम के सिपाहियों में गायब था। लड़ाई के कलाकौशल, हथियारों की खूबी और ऊपर दिखाई पड़ने वाली शान-शौकत के लिहाज से दोनों फौजों का कोई मुकाबला न था। बादशाह के सिपाही लहीम-शहीम, लम्बे-तड़ंगे और आजमाये हुए थे। उनके साज-सामान और तौर-तरीके से देखने वालों के दिलों पर एक डर-सा छा जाता था और वहम भी यह गुमान न कर सकता था कि इस जबर्दस्त जमात के मुकाबले में निहस्थी-सी, अधनंगी और बेकायदा सरदारी फौज एक पल के लिए भी पैर जमा सकेगी। मगर जिस वक्त ‘मारो’ की दिल बढ़ानेवाली पुकार हवा में गूंजी, एक अजीबोगरीब नजारा सामने आया। सरदार के सिपाही तो नारे मारकर आगे धावा करते थे और बादशाह की फौज भागने की राह पर दबी हुई निगाहें डालती थी। दम के दम में मोर्चे गुबार की तरह फट गए और जब मस्कात के मजबूत किले में सरदार नमकखोर शाही किलेदार की मसनद पर अमीराना ठाट-बाट से बैठा और अपनी फौज की कारगुजारियों और जाँबाजियों का इनाम देने के लिए एक तश्त में सोने के तमंगे मँगवाकर रक्खे तो सबसे पहले जिस सिपाही का नाम पुकारा गया वह नौजवान मसऊद था।
मसऊद पर इस वक्त उसकी फौज घमंड करती थी। लड़ाई के मैदान में सबसे पहले उसी की तलवार चमकती थी और धावे के वक्त सबसे पहले उसी के कदम उठाते थे। दुश्मन के मोर्चों में ऐसा बेधड़क घुसता था जैसे आसमान में चमकता हुआ लाल तारा। उसकी तलवार के वार कयामत थे और उसके तीर का निशाना मौत का संदेश।
मगर टेढ़ी चाल की तकदीर से उसका यह प्रताप, यह प्रतिष्ठा न देखी गई। कुछ थोड़े-से आजमाये हुए अफसर, जिनके तेगों की चमक मसऊद के तेग के सामने मन्द पड़ गई थी, उससे खार खाने लगे और उसे मिटा देने की तदबीरें सोचने लगे। संयोग से उन्हें मौका भी जल्द हाथ आ गया। किशवरकुशा दोयम ने बागियों को कुचलने के लिए अब की एक जबर्दस्त फौज रवाना की और मीर शुजा को उसका सिपहसालार बनाया जो लड़ाई के मैदान में अपने वक्त का इसफंदियार था। सरदार नमकखोर ने यह खबर पायी तो हाथ-पांव फूल गये। मीर शुजा के मुकाबले में आना अपनी हार को बुलाना था। आखिरकार यह राय तय पायी कि इस जगह से आबादी का निशान मिटाकर हम लोग किलेबन्द हो जाएं। उस वक्त नौजवान मसऊद ने उठकर बड़े पुरजोश लहजे में कहा:
‘नहीं, हम किलेबंद न होंगे, हम मैदान में रहेंगे और हाथोंहाथ दुश्मन का मुकाबला करेंगे। हमारे सीनों की हड्डियां ऐसी कमजोर नहीं हैं कि तीर-तुपुक के निशाने बर्दाश्त न कर सकें। किलेबन्द होना इस बात का ऐलान है कि हम आमने-सामने नहीं लड़ सकते। क्या आप लोग, जो शाह बामुराद के नामलेवा हैं, भूल गये कि इसी मुल्क पर उसने अपने खानदान के तीन लाख सपूतों को फूल की तरह चढ़ा दिया? नहीं, हम हरगिज किलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुकाबले में ताल ठोंककर आयेंगे और अगर खुदा इन्साफ करने वाला है तो जरूर हमारी तलवारें दुश्मनों से गले मिलेंगी और हमारी बर्छियां उनके पहलू में जगह पायेंगी।‘
सैंकड़ों निगाहे मसऊद के पुरजोश चेहरे की तरफ उठ गयी। सरदारों की त्योरियों पर बल पड़ गये और सिपाहियों के सीने जोश से धड़कने लगे। सरदार नमकखोर ने उसे गले से लगा लिया और बोले-मसऊद, तेरी हिम्मत और हौसले की दाद देता हूँ। तू हमारी फौज की शान है। तेरी सलाह मर्दाना सलाह है। बेशक हम किलेबंद न होंगे। हम दुश्मन के मुकाबले में ताल ठोंककर आयेंगे और अपने प्यारे जन्नतनिशाँ के लिए अपना खून पानी की तरह बहायेंगे। तू हमारे लिए आगे-आगे चलनेवाली मशाल है और हम सब आज इसी रोशनी में कदम आगे बढ़ायेंगे।
मसऊद ने चुने हुए सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और कुछ इस दमखम और कुछ इस जोशखरोश से मीर शुजा पर टूटा कि उसकी सारी फौज में खलबली पड़ गयी। सरदार नमकखोर ने जब देखा कि शाही फौज के कदम डगमगा रहे हैं, तो अपनी पूरी ताकत से बादल और बिजली की तरह लपका और तेगों से तेगें और बर्छियों से बर्छियाँ खड़कने लगीं। तीन घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहाँ तक कि शाही फौज के कदम उखड़ गये और वह सिपाही जिसकी तलवार मीर शुजा से गले मिली मसऊद था।
तब सरदारी फौज और अफसर सब के सब लूट के माल पर टूटे और मसऊद जख्मों से चूर और खून में रँगा हूआ अपने कुछ जान पर खेलनेवाले दस्तों के साथ मस्कात के किले की तरफ लौटा मगर जब होश ने आंखें खोलीं और हवास ठिकाने हुए तो क्या देखता है कि वह एक सजे हुए कमरे में मखमली गद्दे पर लेटा हुआ है। फूलों की सुहानी महक और लम्बी छरहरी सुन्दरियों के जमघट से कमरा चमन बना हुआ था। ताज्जुब से इधर-उधर ताकने लगा कि इतने में एक अप्सरा-जैसी सुन्दर युवती तश्त में फूलों का हार लिये धीरे-धीरे आती हुई दिखायी दी कि जैसे बहार फूलों की डाली पेश करने आ रही है। उसे देखते ही उन लंबी छरहरी सुन्दरियों ने आंखें बिछायीं और उसकी हिनाई हथेली को चूमा। मसऊद देखते ही पहचान गया। यह मलिका शेर अफगान थी।

   1
0 Comments